लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
माहिर-पूछ लेना।
ऐसा न हो
कि हम लोग
खाकर सोएँ, और
वह बेचारी रोजे
से रह जाएँ।
जैनब-ऐसी अनीली
नहीं है, वह
हम-जैसों को
चरा लाएँ। हाँ,
पूछना मेरा फर्ज
है, पूछ लूँगी।
रकिया-सालन और
रोटी, किस मुँह
से खाएँगी, उन्हें
तो जरदा-शीरमाल
चाहिए।
दूसरे दिन सबेरे
दोनों बच्चे बावर्चीखाने
में गए, तो
जैनब ने ऐसी
कड़ी निगाहों से
देखा कि दोनों
रोते हुए लौट
आए। अब कुल्सूम
से न रहा
गया। वह झल्लाकर
उठी और बावर्चीखाने
में जाकर मामा
से बोली-तूने
बच्चों को खाना
क्यों नहीं दिया
रे? क्या इतनी
जल्दी काया-पलट
हो गई? इसी
घर के पीछे
हम मिट्टी में
मिल गए और
मेरे लड़के तड़पें,
किसी को दर्द
न आए?
मामा ने कहा-तो आप
मुझसे क्या बिगड़ती
हैं, मैं कौन
होती हूँ, जैसा
हुकुम पाती हूँ,
वैसा करती हूँ।
जैनब अपने कमरे
से बोली-तुम
मिट्टी में मिल
गईं, तो यहाँ
किसने घर भर
लिया। कल तक
कुछ नाता निभा
जाता था, वह
भी तुमने तोड़
दिया। बनिए के
यहाँ से कर्ज
जिंस आई, तो
मुँह में दाना
गया। सौ कोस
से लड़का आया,
तुमने बात तक
न पूछी। तुम्हारी
नेकी कोई कहाँ
तक गाए।
आज से कुल्सूम
की रोटियाँ के
लाले पड़ गए।
माहिर अली कभी
दोनों भाइयों को
लेकर नानबाई की
दूकान से भोजन
कर आते, कभी
किसी इष्ट-मित्रा
के मेहमान हो
जाते। जैनब और
रकिया के लिए
मामा चुपके-चुपके
अपने घर से
खाना बना लाती।
घर में चूल्हा
न जलता। नसीमा
और साबिर प्रात:काल घर
से निकल जाते।
कोई कुछ दे
देता, तो खा
लेते। जैनब और
रकिया की सूरत
से ऐसे डरते
थे, जैसे चूहा
बिल्ली से। माहिर
के पास भी
न जाते। बच्चे
शत्रु और मित्रा
को खूब पहचानते
हैं। अब वे
प्यार के भूखे
नहीं, दया के
भूखे थे। रही
कुल्सूम,उसके लिए
गम ही काफी
था। वह सीना-पिरोना जानती थी,
चाहती तो सिलाई
करके अपना निर्वाह
कर लेती; पर
जलन के मारे
कुछ न करती
थी। वह माहिर
के मुँह में
कालिख लगाना चाहती
थी, चाहती थी
कि दुनिया मेरी
दशा को देखे
और इन पर
थूके। उसे अब
ताहिर अली पर
भी क्रोधा आता
था-तुम इसी
लायक थे कि
जेल में पड़े-पड़े चक्की
पीसो। अब ऑंखें
खुलेंगी। तुम्हें दुनिया के
हँसने की फिक्र
थी। अब दुनिया
किसी पर नहीं
हँसती! लोग मजे
से मीठे लुकमे
उड़ाते और मीठी
नींद सोते हैं।
किसी को तो
नहीं देखती कि
झूठ भी इन
मतलब के बंदों
की फजीहत करे।
किसी को गरज
ही क्या पड़ी
है कि किसी
पर हँसे। लोग
समझते होंगे, ऐसे
कमसमझों, लाज पर
मरनेवालों की यही
सजा है।